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फाह्यान-पैदल चाइना से इंडिया आ गए…

फाह्यान-पैदल चाइना से इंडिया आ गए…
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Monday 11 May 2020



ये पहले फ़ेमस ट्रैवलर थे. चाइना से निकले थे घूमने, चौथी सेंचुरी में.
  • फाह्यान बौद्ध साधु थे. मन लगा कर बुद्ध के उपदेशों को पढ़ते थे. इन उपदेशों को ‘त्रिपिटक’ कहा जाता है. पढ़ते-पढ़ते मामला कहीं फंस गया. और उन्हें ज़रूरत महसूस हुई पूरे ‘विनयपिटक’ को पढ़ने की, जो कि मिलता था भारत में. और इसीलिए फाह्यान चले आए भारत. मतलब समझ लो वो ज्ञान के चक्कर में घूमने निकल गए.

Faxian

फैमिली बैकग्राउंड:

  • फाह्यान अमीर बाप के लड़के नहीं थे. अब चौथी सेंचुरी का कोई इनकम रिकॉर्ड तो है नहीं. लेकिन लगभग मिडिल क्लास घर के रहे होंगे. फाह्यान के तीन बड़े भाई भी थे. तीनों स्कूल जाने की उम्र से पहले ही गुज़र गए. अब इनके पापा इनको लेकर बड़े परेशान हो गए. इसीलिए इनका एडमिशन बौद्ध मठ में करा दिया. लेकिन फाह्यान अभी बच्चे थे, तो वो रहते घर पर ही थे. एक बार वो खूब बीमार पड़ गए. अब उनके पापा उनको बौद्ध मठ के हवाले कर आए.
  • ठीक होने के बाद भी उन्होंने वापस आने से मना कर दिया. मतलब समझ लो फाह्यान छोटी उम्र में ही हॉस्टल चले गए. 10 साल के थे, तभी उनके पापा मर गए. लोगों ने समझाया कि मम्मी के पास घर लौट जाओ. फाह्यान बोले कि हम पापा के कहने पे नहीं, अपनी मर्ज़ी से घर छोड़ के आए थे. आम जिंदगी उन्हें बिलकुल भी पसंद नहीं थी. फिर मम्मी मरीं तो फाह्यान घर गए. लेकिन फिर वापस मठ चले आए.

ट्रेवल रूट:

  • फाह्यान पैदल चाइना से भारत तक आए थे. रास्ते में ठंडे रेगिस्तान और खतरनाक पहाड़, सब कुछ पार करते हुए. भारत में वो नॉर्थ-ईस्ट से आए. सबसे पहले पाटलिपुत्र पहुंच गए. उस वक़्त यहां गुप्त वंश के चन्द्रगुप्त (द्वितीय) राजा थे. फाह्यान लुंबिनी भी गए, जहां बुद्ध पैदा हुए थे. यहां ये काफी वक्त रहे. अंत में वो श्रीलंका पहुंचे. वहां 2 साल रहने के बाद वो चाइना के लिए नाव से वापस चले. लेकिन रास्ते में आई एक जोरदार आंधी. रास्ता गुमे और नाव जा पहुंची जावा. फिर पांच महीने बाद वो चाइना के लिए निकले. रास्ते में एक बार फिर कहीं भटक गए थे. गनीमत की बात ये थी कि भारत से श्रीलंका और फिर वापस चाइना जाने के लिए फाह्यान को पैदल नहीं जाना पड़ा था. नाव में गए थे.
  • पाटलिपुत्र के बाद, वो राजगृह भी घूम आए. बनारस, अवध, कन्नौज की कुछ जगहों, खासकर मठों में घूमने के बाद फाह्यान हुगली भी पहुंचे थे. भारत के बाद श्रीलंका भी गए. फाह्यान 25 साल की उम्र में चाइना से निकले थे. और 77 साल के होने पर वापस घर पहुंचे.

मुश्किलें:

इनका तो सफ़र शुरू से अंत तक मुश्किलों से भरा रहा. पहले तो इतना मुश्किल रास्ता अकेले तय करना और वो भी पैदल. यहां आकर उन्हें भाषा की दिक्कत आई. तब फाह्यान ने संस्कृत सीखी.

 

चन्द्रगुप्त द्वितीय की प्रशंसा :

  • नालन्दा में फ़ाह्यान ने बुद्ध के शिष्य 'सारिपुत्र' की अस्थियों पर निर्मित स्तूप का उल्लेख किया, इसके बाद वह राजगृह, बोधगया एवं सारनाथ की यात्रा के बाद वापस पाटलिपुत्र आया, जहां कुछ समय बिताने के बाद स्वदेश लौट गया। इस दौरान फ़ाह्यान ने लगभग 6 वर्ष सफर में एवं 6 वर्ष अध्ययन में बिताया। पाटिलपुत्र में संस्कृत के अध्ययन हेतु उसने 3 वर्ष व्यतीत किये। फ़ाह्यान ने अपने समकाली नरेश चन्द्रगुप्त द्वितीय के नाम की चर्चा न कर उसकी धार्मिक सहिष्णुता की नीति एवं कुशल प्रशासन की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है। उसके अनुसार इस समय जनता सुखी थीं, कर का भार अल्प था, शारीरिक दण्ड एवं मृत्युदण्ड का प्रचलन नहीं था, अर्थदण्ड ही पर्याप्त होता था।

फाह्यान ने कोई ट्रैवलॉग लिखा क्या?

फाह्यान ने जितने भी ग्रंथ और उपदेश इकट्ठे किए, उन सब को ट्रांसलेट किया. लेकिन सबसे अच्छा काम किया अपना ट्रेवल अकाउंट लिख कर. इस ट्रेवल अकाउंट को ‘A Record of Buddhist Kingdoms’ कहा जाता है. इसमें उन्होंने बुद्धिज़्म के शुरुआती दिनों के बारे में पूरे डिटेल में लिखा. उन्हें सिल्क रूट के रास्ते ही आना था. तो उन्होंने रास्ते में पड़ने वाले सभी जगहों की हिस्ट्री और जियोग्राफी के बारे में लिख डाला. फाह्यान जितने बौद्ध मठों में गए, सबके बारे में लिखा. वहां के साधुओं, उनकी रोजमर्रा की जिंदगी, उनकी बताई हुई बौद्ध कहानियां, सबके बारे में लिखा.