MASIGNASUKAv102
6510051498749449419

मेवाड़ का वीर योद्धा महाराणा प्रताप

मेवाड़ का वीर योद्धा महाराणा प्रताप
Add Comments
Monday 11 May 2020


Tribute to the great Maharana Pratap. An epitome of valour, courage and bravery. Inspiration for all.

MahaRana Pratap Jayanti

जन्म :
  • महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 ईस्वी को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था। लेकिन उनकी जयंती हिन्दी तिथि के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया को मनाई जाती है। उनके पिता महाराजा उदयसिंह और माता राणी जीवत कंवर थीं।
  • वे राणा सांगा के पौत्र थे। महाराणा प्रताप को बचपन में सभी 'कीका' नाम लेकर पुकारा करते थे। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी संवत कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।
09 मई, 1540 को जन्मे महाराणा प्रताप की मौत  29 जनवरी, 1597 को हुई थी.
  • महाराणा प्रताप अकबर के खिलाफ लड़े और सैन्य लिहाज से कमजोर होने के बाद भी सिर नहीं झुकाया. जितने किस्से उनके मशहूर हैं, उतने ही उनके घोड़े ‘चेतक’ के हैं. कई किवदंतियां भी सुनाई जाती हैं. हमारे एक मास्टर साहब तो राणा प्रताप को पढ़ाते हुए भावुक हो जाते थे.
  • बताते थे कि राणा दोनों हाथों में भाले लेकर विपक्षी सैनिकों पर टूट पड़ते थे. हाथों में ऐसा बल था कि दो सैनिकों को एक साथ भालों की नोंक पर तान देते थे. यह भी कहा जाता है कि मेवाड़ में लोग सुबह उठकर देवी-देवता को नहीं, राणा को याद करते हैं.

महाराणा प्रताप के 7 किस्से:

महाराणा प्रताप पूरे जीवन मुगलों से ...
ऐसे महाराणा प्रताप के कुछ किस्से सुनिए.

1. वफादार मुसलमान ने बचाई थी महाराणा की जान

  • 1576 में महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच यह युद्ध हुआ. अकबर की सेना को मानसिंह लीड कर रहे थे. बताते हैं कि मानसिंह के साथ 10 हजार घुड़सवार और हजारों पैदल सैनिक थे.
  • लेकिन महाराणा प्रताप 3 हजार घुड़सवारों और मुट्ठी भर पैदल सैनिकों के साथ लड़ रहे थे.
  • इस दौरान मानसिंह की सेना की तरफ से महाराणा पर वार किया जिसे, महाराणा के वफादार हकीम खान सूर ने अपने ऊपर ले लिया और उनकी जान बचा ली. उनके कई बहादुर साथी जैसे भामाशाह और झालामान भी इसी युद्ध में महाराणा के प्राण बचाते हुए शहीद हुए थे.

2. हवा से बात करता घोड़ा चेतक

  • चेतक महाराणा का सबसे प्रिय घोड़ा था. हल्दीघाटी में महाराणा बहुत घायल हो गये थे, उनके पास कोई सहायक नहीं था. ऐसे में महाराणा ने चेतक की लगाम थामी और निकल लिए.
  • उनके पीछे दो मुग़ल सैनिक लगे हुए थे, पर चेतक की रफ़्तार के सामने दोनों ढीले पड़ गए. रास्ते में एक पहाड़ी नाला बहता था. चेतक भी घायल था पर छलांग मार नाला फांद गया और मुग़ल सैनिक मुंह ताकते रह गए.
  • लेकिन अब चेतक थक चुका था. वो दौड़ नहीं पा रहा था. महाराणा की जान बचाकर चेतक खुद शहीद हो गया.

3. भाई शक्ति सिंह विरोधी हो गए थे, फिर प्रेम जाग गया

  • हल्दीघाटी के बाद महाराणा जब बचकर कुछ दूर पहुंच गए उसी समय महाराणा को किसी ने पीछे से आवाज लगाई- “हो, नीला घोड़ा रा असवार.” महाराणा पीछे मुड़े तो उनका भाई शक्तिसिंह आ रहा था.
  • महाराणा के साथ शक्ति की बनती नहीं थी तो उसने बदला लेने को अकबर की सेना ज्वाइन कर ली थी और जंग के मैदान में वह मुगल पक्ष की तरफ से लड़ रहा था. युद्ध के दौरान शक्ति सिंह ने देखा कि महाराणा का पीछा दो मुगल घुड़सवार कर रहे हैं.
  • तो शक्ति का पुराना भाई-प्रेम जाग गया और उन्होंने राणा का पीछा कर रहे दोनों मुगलों को मारकर ऊपर पहुंचा दिया.

4. सारी की सारी जनता थी राणा की सेना

  • राणा प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ के किले में हुआ था. ये किला दुनिया की सबसे पुरानी पहाड़ियों की रेंज अरावली की एक पहाड़ी पर है. राणा का पालन-पोषण भीलों की कूका जाति ने किया था. भील राणा से बहुत प्यार करते थे.
  • वे ही राणा के आंख-कान थे. जब अकबर की सेना ने कुम्भलगढ़ को घेर लिया तो भीलों ने जमकर लड़ाई की और तीन महीने तक अकबर की सेना को रोके रखा. एक दुर्घटना के चलते किले के पानी का सोर्स गन्दा हो गया.
  • जिसके बाद कुछ दिन के लिए महाराणा को किला छोड़ना पड़ा और अकबर की सेना का वहां कब्ज़ा हो गया. पर अकबर की सेना ज्यादा दिन वहां टिक न सकी और फिर से कुम्भलगढ़ पर महाराणा का अधिकार हो गया. इस बार तो महाराणा ने पड़ोस के और दो राज्य अकबर से छीन लिए.

5. घास की रोटियां

  • जब महाराणा प्रताप अकबर से हारकर जंगल-जंगल भटक रहे थे एक दिन पांच बार भोजन पकाया गया और हर बार भोजन को छोड़कर भागना पड़ा. एक बार प्रताप की पत्नी और उनकी पुत्रवधू ने घास के बीजों को पीसकर कुछ रोटियां बनाईं.
  • उनमें से आधी रोटियां बच्चों को दे दी गईं और बची हुई आधी रोटियां दूसरे दिन के लिए रख दी गईं. इसी समय प्रताप को अपनी लड़की की चीख सुनाई दी.
  • एक जंगली बिल्ली लड़की के हाथ से उसकी रोटी छीनकर भाग गई और भूख से व्याकुल लड़की के आंसू टपक आये. यह देखकर राणा का दिल बैठ गया.
  • अधीर होकर उन्होंने ऐसे राज्याधिकार को धिक्कारा, जिसकी वज़ह से जीवन में ऐसे करुण दृश्य देखने पड़े. इसके बाद अपनी कठिनाइयां दूर करने के लिए उन्होंने एक चिट्ठी के जरिये अकबर से मिलने की इच्छा जता दी.

6. अकबर भी तारीफ किए बिना नहीं रह सका

  • जब महाराणा प्रताप अकबर से हारकर जंगल-जंगल भटक रहे थे. अकबर ने एक जासूस को महाराणा प्रताप की खोज खबर लेने को भेजा गुप्तचर ने आकर बताया कि महाराणा अपने परिवार और सेवकों के साथ बैठकर जो खाना खा रहे थे उसमें जंगली फल, पत्तियाँ और जड़ें थीं. जासूस ने बताया न कोई दुखी था, न उदास.
  • ये सुनकर अकबर का हृदय भी पसीज गया और महाराणा के लिए उसके ह्रदय में सम्मान पैदा हो गया. अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने भी अकबर के मुख से प्रताप की प्रशंसा सुनी थी. उसने अपनी भाषा में लिखा, “इस संसार में सभी नाशवान हैं.
  • महाराणा ने धन और भूमि को छोड़ दिया, पर उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया. हिंदुस्तान के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है.” उनके लोग भूख से बिलखते उनके पास आकर रोने लगते.
  • मुगल सैनिक इस प्रकार उनके पीछे पड़ गए थे कि भोजन तैयार होने पर कभी-कभी खाने का अवसर भी नहीं मिल पाता था और सुरक्षा के कारण भोजन छोड़कर भागना पड़ता था.

7. महाराणा प्रताप की थीं 11 बीवियां

  • महाराणा प्रताप की कुल 11 बीवियां थीं और महाराणा की मृत्यु के बाद सबसे बड़ी रानी महारानी अजाब्दे का बेटा अमर सिंह प्रथम राजा बना.

हल्दीघाटी का युद्ध


    एक नया इतिहास बताया जा रहा है कि हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने अकबर को हरा दिया था. अभी तक इससे ठीक उलटी बात बताई जाती थी. ये भी प्रचलित बात है कि महाराणा प्रताप अपनी कसम को बचाए रखने के लिए घास की रोटियां खाते रहे. जंगलों में रहते रहे. कुछ दिन पहले राजस्थान सरकार के मंत्री मोहनलाल गुप्ता ने सुझाव दिया था कि हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की जगह राणा प्रताप को विजेता दिखाया जाए.
    • अब राजस्थान के इतिहासकार चंद्रशेखर शर्मा ने एक शोध जारी किया है. शर्मा के हिसाब से राणा प्रताप हल्दीघाटी युद्ध के बाद ज़मीनों के पट्टे जारी करते रहे. इस हिसाब से महाराणा प्रताप की जीत हल्दीघाटी के युद्ध में हुई थी. अगर वो हारे होते तो लोगों को पट्टे कैसे जारी करते?
    • लोगों का एक खास तबका इस नए ‘इतिहास’ को बहुत पसंद कर रहा है. लेकिन सच्चाई क्या मानी जाए? आइए नजर डालते हैं जून 1576 में हुए हल्दीघाटी के इस युद्ध की एेसी बातों पर जो अब तक हमारी जानकारी में रही है. ये जानकारियां सदियों तक सार्वजनिक दायरे में थी, और कैसे अब एकाएक सदियों के तथ्यों से परे एक नया इतिहास रचने की कोशिश हो रही है. पढ़ें और खुद तय करें-

    1. हल्दीघाटी में नहीं हुई थी लड़ाई

    • हल्दीघाटी राजस्थान की दो पहाड़ियों के बीच एक पतली सी घाटी है. मिट्टी के हल्दी जैसे रंग के कारण इसे हल्दी घाटी कहा जाता है. इतिहास का ये युद्ध हल्दीघाटी के दर्रे से शुरू हुआ लेकिन महाराणा वहां नहीं लड़े थे, उनकी लड़ाई खमनौर में चली थी.
    मुगल इतिहासकार अबुल फजल ने इसे “खमनौर का युद्ध” कहा है.
    • राणा प्रताप के चारण कवि रामा सांदू ‘झूलणा महाराणा प्रताप सिंह जी रा’ में लिखते हैंः
    “महाराणा प्रताप अपने अश्वारोही दल के साथ हल्दीघाटी पहुंचे, परंतु भयंकर रक्तपात खमनौर में हुआ.”

    2. बस चार घंटों में बदल गया सब

    • हल्दीघाटी के युद्ध की दो तारीखें मिलती हैं. पहली 18 जून और दूसरी 21 जून. इन दोनों में कौन सी सही है, एकदम निश्चित कोई भी नहीं है. मगर सारे विवरणों में एक बात तय है कि ये युद्ध सिर्फ 4 घंटे चला था.

    3. हॉलीवुड फिल्म ‘300’ वाली योजना थी मगर राणा जी चला नहीं पाए

    • 2006 में रिलीज हुई डायरेक्टर ज़ैक श्नाइडर की हॉलीवुड फिल्म है ‘300’. इतिहास के एक चर्चित युद्ध पर बनी इस फिल्म में राजा लियोनाइडस अपने 300 सैनिकों के साथ 1 लाख लोगों की फौज से लड़ता है. पतली सी जगह में दुश्मन एक-एक कर अंदर आता है और मारा जाता है.
    • राणा प्रताप ने इसी तरह की योजना बनाई थी. मगर मुगलों की ओर से लड़ने आए जनरल मानसिंह घाटी के अंदर नहीं आए.
    • मुगल जानते थे कि घाटी के अंदर इतनी बड़ी सेना ले जाना सही नहीं रहेगा. कुछ समय सब्र करने के बाद राणा की सेना खमनौर के मैदान में पहुंच गई. इसके बाद ज़बरदस्त नरसंहार हुआ. कह सकते हैं कि 4 घंटों में 400 साल का इतिहास तय हो गया.

    4. सेनाओं में नहीं थी बराबरी

    • राणा प्रताप की सेना मुगलों की तुलना में एक चौथाई थी. सेना की गिनती की ही बात नहीं थी. कई मामलों में मुगलों के पास बेहतर हथियार और रणनीति थी. मुगल अपनी सेना की गिनती नहीं बताते थे.
    • मुगलों के इतिहासकार बदांयूनी लिखकर गए हैं, “5,000 सवारों के साथ कूच किया.” दुश्मन को लग सकता था कि 5,000 की सेना है मगर ये असल में सिर्फ घो़ड़ों की गिनती है, पूरी सेना की नहीं. इतिहास में सेनाओं की गिनती के अलग-अलग मत हैं.
    • ब्रिटिश इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने लिखा है कि 22,000 राजपूत 80,000 मुगलों के खिलाफ लड़े थे. ये गिनती इसलिए गलत लगती है क्योंकि अकबर ने जब खुद चित्तौड़ पर हमला किया था तो 60,000 सैनिक थे. ऐसे में वो मान सिंह के साथ अपने से ज़्यादा सैनिक कैसे भेज सकता था?
    • अगर राजस्थानी इतिहासकार मुहणौत नैणसी, मुगल इतिहासकार अब्दुल कादिर बंदायूनी, अबुल फजल और प्रसिद्ध हिस्टोरियन यदुनाथ सरकार के आंकड़ों को मिलाकर एक औसत निकाला जाए तो 5,000 मेवाड़ी और 20,000 मुगल सैनिकों के लड़ने की बात मानी जा सकती है.

    5. मगर ताकत का बंटवारा सिर्फ सैनिकों की गिनती से नहीं होता

    • मेवाड़ के पास बंदूकें नहीं थीं. जबकि मुगल सेना के पास कुछ सौ बंदूकें थीं.
    • राणा प्रताप की तरफ से प्रसिद्ध ‘रामप्रसाद’ और ‘लूना’ समेत 100 हाथी थे. मुगलों के पास इनसे तीन गुना हाथी थे. मुगल सेना के सभी हाथी किसी बख्तरबंद टैंक की तरह सुरक्षित होते थे और इनकी सूंड पर धारदार खांडे बंधे होते थे.
    • राणा प्रताप के पास चेतक समेत कुल 3,000 घोड़े थे. मुगल घोड़ों की गिनती कुल 10,000 से ऊपर थी.
    • मेवाड़ की तरफ से तोपों का इस्तेमाल न के बराबर हुआ. खराब पहाड़ी रास्तों से राजपूतों की भारी तोपें नहीं आ सकती थीं. जबकी मुगल सेना के पास ऊंट के ऊपर रखी जा सकने वाली तोपें थीं.
    • लड़ाई में राजपूतों ने ऊंटों का भी इस्तेमाल नहीं किया. जबकि मुगल इतिहासकार मुहम्मद हुसैन लिखते हैं,

    “मुगल फौज में ऊंटों के रिसाले आंधी की तरह दौड़ रहे थे”

    6. राणा के बदले झाला को जान देनी पड़ी

    • युद्ध के बीच में एक समय पर राणा प्रताप को मुगलों ने घेर लिया. उनके दूर से दिखते मुकुट को ही निशाना बनाया जा रहा था. ऐसे में सरदार मन्नाजी झाला ने राणा का मुकुट खुद पहन लिया. कहा जाता है कि राणा उस समय तक बुरी तरह घायल हो गए थे.
    • मुगल सेना ने मन्ना जी को राणा समझ कर निशाना बनाना शुरू किया. मन्ना जी कुछ ही देर तक संघर्ष कर पाए मगर अपनी जान देकर उन्होंने महाराणा प्रताप की जान बचा ली.
    • आज रोज़ एक नया इतिहास लिखा जा रहा है. वॉट्स्ऐप की खबरों को तथ्य बनाकर पेश किया जा रहा है, कविताओं को तथ्यों की तरह से कोट किया जा रहा है. ऐसे में इतिहास के इस युद्ध के बारे में मुगल और मेवाड़ी इतिहासकारों के तथ्य हमने आपको दे दिए हैं. इस युद्ध में कौन जीता होगा कौन हारा होगा, आप खुद तय करें.